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एक चमत्कार
सच है - जाको राखे साइयाँ , मारि सके ना कोय । बाल न वाँका करि सके , जो जग बैरी होय । ईश्वर जिसकी रक्षा करता है उस का भला कोई क्या बिगाड़ सकता है ।
कहा है - राम भरोसे जो रहहि , पर्वत पर हरियाय । बालक भगवान तो बस राम भरोसे थे । काश हम भी राम भरोसे रहना सीख जाते ?
ईश्वर अंश जिव अविनाशी |
चेतन , अमल , सहज सुख राशि ||
गीता में अर्जुन से भगवान कृष्ण ने कहा है-
ईश्वर सर्वभूतानां हृद्देशे तिश्ठति
दिव्य मानवों का जीवन वृत चमत्कारों की गाथा से परिपूर्ण होता है । जन्म से ही अघटित घटनायें इनके जीवन में घटती रहती हैं । ईश्वर की लीला विचित्र हैं वह महा - मानवों के जीवन को रहस्यों , चमत्कारों से भर देता हैं बालक भगवान जन्म लेते ही इनको अपने पयपान कराकर पालने वाली माता के सीने से पयधार के चमत्कार का वर्णन पिछले पृष्ठ में किया जा चुका है ।
यहाँ एक अन्य घटना से पाठकों को साक्षात्कार कराया जा रहा आयु में चरण रखने के हैं । पहले ही बताया जा चुका है कि बालक भगवान के साढ़े चार वर्ष की ही पिता चल बसे थे । माता अस्वस्थता , अशिक्षा और दैन्यता से जूझ रही थीं । कोई सहायक था नहीं । बड़ी विचित्र विवशता थी । ईश्वर ने हरिश्चन्द्र की सत्य निष्ठा की जैसे परीक्षा ली , वैसे ही विषमताओं की परीक्षा से माता राधाबाई जूझ रही थीं ।
पाँच वर्ष की आयु आते आते शिशु पूर्णेन्द्र ( बालक भगवान ) को तीव्र ज्वर का दौरा पड़ा मॉ समझ नहीं पायी कि कहाँ जायें , क्या करें , कैसे औषधि की व्यवस्था हो और ज्वर जो था वह उतरने का नाम नहीं ले रहा था । माँ को कुछ सूझा नहीं , अन्त में परेशान हो इस बालक को नग्न बदन लेकर शीतला माता के चरणों में भूमि पर रात्रि काल में लिटा कर चली आयीं । वर्षा हो रही थी , खुला चबूतरा था , ऊपर से तीव्र ज्वर जननी ने अपनी विवशता के चलते शिशु को जगत जननी की गोद में सौंप दिया ।
चमत्कार यह हुआ कि दूसरे दिन सूर्योदय कालीन किरणों की वर्षा शिशु के दिगम्बर शरीर पर क्या हुई- अमृत वर्षा हो गई , ईश्वर का आशीर्वाद अंशुमाली की सहस्त्र किरणों के रूप में शिशु पर पड़ा और बालक पूर्ण स्वस्थ , स्मित मुखमंडल लिये उठ खड़ा हुआ ।
इस दृष्टि से देखें तो हम अपने वर्तमान जन्म के आधार पर प्रायः अपने विगत जन्म का आकलन कर सकते है । बालक भगवान् जिस जनक जननी के घर आये उनका इतिहास उनका कर्म बड़ा पुनीत था , वह परिवार सभ्य , सुसंस्कृत , धर्मशील और सरल व विनम्र था , शहर की कुटिलताओं से दूर सुदूर ग्रामांचल के निवासी कृषक परिवार का चयन बालक भगवान ने किया , क्योंकि हमारे वर्तमान जीवन को न केवल हमारे पूर्वार्जित कर्म , संस्कार ही प्रभावित करते हैं , अपितु इस जन्म के माता पिता के विचार , परिवार एवं परिवेश भी पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं । हम वहीं से अपना वर्तमान जीवन प्रारंभ करते हैं , जहाँ तक हम पिछले जन्म में पहुँच चुके थे । विकास बाद का सिद्धान्त भी यही प्रमाणित करता हैं हम सतत विकास - मान हैं हमारी गति जाने अनजाने ईश्वर सानिध्य की ओर ही गतिशील है यह हमारे आर्ष ऋषियों का अनुभूत सिद्धान्त है ।
सच है -